नारी विमर्श >> द सेकेंड सेक्स : खण्ड – 1 द सेकेंड सेक्स : खण्ड – 1सिमोन द बोव्आर
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स्त्री की वस्तुस्थिति, उसे अन्य के रूप में परिभाषित करने और पुरुषों के दृष्टिकोण से उसके परिणामों को समझने का प्रयास हम जीव-विज्ञान, मनोविज्ञान और ऐतिहासिक भौतिकवाद के माध्यम से करेंगे। इस प्रकार, हम वह दुनिया वर्णन करेंगे जिसमें स्त्री को रहना पड़ता है और उसे उस दायरे से बाहर निकलने के लिए किस तरह की अड़चनें आती हैं।
चर्चा की शुरुआत हम जीव-विज्ञान, मनोविश्लेषण और ऐतिहासिक भौतिकवाद द्वारा औरतों पर लिए गये दृष्टिकोण से करेंगे। फिर हम सकारात्मक रूप से यह प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे कि ‘स्त्री की वस्तुस्थिति’ को किस तरह गढ़ा गया है, औरत को अन्य के रूप में क्यों परिभाषित किया गया है, और पुरुषों के दृष्टिकोण से इसके क्या परिणाम हुए हैं। उस दुनिया का वर्णन करेंगे जिसमें उन्हें रहना पड़ता है; और तब हम यह समझ पायेंगे कि स्त्री जब उस दायरे के बाहर निकलना चाहती है जिसमें अब तक उसे क़ैद रखा गया था तो उसके सामने किस तरह की अड़चनें आती हैं। वह भी अपना व्यक्तिगत विकास कर के अपने अस्तित्व की सार्थकता सिद्ध करना चाहती है और मानवता में बराबर की साझेदारी की आकांक्षा रखती है।
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